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- प्रेम दिवस
मित्रवर…आज ‘प्रेम दिवस’ है, कुछ लिखा है…
जीवन प्रेम से प्रारम्भ और समाप्त भी प्रेम पर ही अर्पण समर्पण भी प्रेम ही और तर्पण और तपस्या भी प्रेम प्रेम में विकल्प नहीं संकल्प है स्वयं पर विश्वास है प्रेम निष्ठा है स्वयं पर ही कृष्ण! तुम हो या ना हो मीरां तो है ही प्रेम दीवानी तुम पास हो कृष्ण! या ना हो राधा तो भूली ही है सुधबुध लक्ष्मण! तुम रहो कर्तव्यरत उर्मिला प्रेम में रही घर आँगन ही और कृष्ण! तुम राग में हो या रास में रुक्मिणी तो मर्यादित ही रहेगी प्रेम में प्रेम में कोई बिम्ब और आलम्बन नहीं अभिधा लक्षणा व्यंजना भी नहीं ना ही आभास और कल्पना एक ही रस है एक ही भाव है एक ही सुर है एक ही ताल है विराट हो या सूक्ष्म हो मुझमें हो या तुझमें हो प्रेम प्रेम है और बस प्रेम है...
- परिवर्तन…
समय के साथ-साथ लोग बदलते हैं और आगे बढ़ जाते हैं… आँगन में लेटकर तारे गिनते गिनते… जाने कब तारे आँचल में सिमट आते हैं… हवा में बिखरे महकते एहसास दिल से जुड़ जाते हैं… आँखों में पलते सपने हक़ीकत बन जाते हैं… और अरमानों के क़फिले दर ब दर गुज़रते जाते हैं… धीरे धीरे दिल की बातें जो पहले पहुँचती थीं सीधे दिल तक अब नहीं पहुँचतीं… अब इस रास्ते से दिल की नहीं दिमाग़ की, तर्कों की, कसौटी पर कसी बातें आती हैं… धीरे धीरे समय बदलता है सोच बदलती है परिस्थिति बदलती है प्रकृति बदलती है विचार बदलते हैं सबक़ भी बदल जाते है समस्याएँ बदलती हैं समाधान भी बदलते हैं सूरज के निकलने का ढलने का समय भी बदलता है परिवर्तन… नियम है जीवन का और इस नियम के साथ ही वरीयताएँ भी बदल जाती हैं कोण-दृष्टिकोण बदलते हैं नज़रिये भी बदलते हैं सुविधा के अनुसार पसंद नापसंद भी बदलती है किनारे वहीं रह जाते हैं बस बहाव बदल जाता है रूख बदल जाता है तारे भी वहीं नहीं रहते वो भी जगह बदलते हैं कुछ सवालों के जवाब बहुत ढूंढने पर भी नहीं मिलते, क्योंकि उन सवालों के जवाब ज़िन्दगी को जी कर ही मिल पाते हैं…
- प्रार्थना गीत
प्रार्थना गीत जिसमें ख़ुशबू है मेरे आँगन के फूलों की और है गगन का विस्तार ऊर्जा है… तपन है… सूर्य की गर्मी की धरती का गहन सौन्दर्य है सागर की पवित्रता है… और है प्रेम… जो फैला है इंद्रधनुष सा… सतरंगी सपनों सा… यहाँ वहाँ… इधर उधर… क्षितिज तक… यही गीत है प्रार्थना है… तुम जियो हज़ारों साल... साल के दिन हों पचास हज़ार...
- फासले…
फासले बस… होते ही हैं फासले क्योंकि… बड़े दिलचस्प होते हैं ये फासले … कभी पास रह कर भी हो जाते हैं ये फासले और कभी रहो कितने भी दूर फिर भी… बीच में कहां आ पाते हैं ये फासले… कभी सोच में भी आ जाते हैं ये फासले दरिया से फैलते राहों से बढ़ते, पसरते कभी मंजिलों पर खड़े मिल जाते यूँ ही ये फासले… कभी आसमान सी बुलन्दी लिये ये फासले कभी सदियों तक फिसलते पलकों पर ठिठकते रूकते और कभी यूँ ही पलों में ढल जाते हैं ये फासले... रिसते सिसकते फासले संगींन हैं ये फासले… क्योंकि… बड़े ही दिलचस्प होते हैं ये फासले … कभी बढ़ते, कभी सिमटते फासले कभी मिटाये ना मिटते फासले कभी काटो ना कटते फासले कभी ख़ुद के बनाये फासले कभी खुद ब ख़ुद ही बन जाते हैं ये फासले… क्योंकि… फासले बस होते ही हैं फासले… बड़े दिलचस्प होते हैं ये फासले… लेकिन... चाहो तो बस… मोम से ही होते हैं ये फासले पहल करते ही पिघलते फासले अब इतने भी बड़े नहीं होते हैं ये फासले… और इतनी दूर भी नहीं होते हैं फासले... क्योंकि… फासले बस होते ही हैं फासले… बड़े दिलचस्प होते हैं ये फासले…
- कविता…
कविता क्या है? कम शब्दों में ज़्यादा बातें... कुछ कही कुछ अनकही सी... कुछ सुनी कुछ अनसुनी सी... अव्यक्त... अभिव्यक्ति सी… जितनी समझी अच्छी लगी… बाक़ी मेरी नासमझी सी बस समझ लो कि उतनी ही बातें कहीं मैंने... कि जितनी तुमने समझीं… बस…शब्दों का तालमेल और कविता बस कविता ही…रही…